हाथ आया मुंह न लगा | लाखों का मौका गंवाने की कहानी | Hindi Moral Story | Life Changing Story

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दोस्तों स्टोरी सुनो डॉट कॉम पर आपका स्वागत है। कैसे हैं आप सब, आज की कहानी है, “हाथ आया मुंह को न लगा”। चलिए कहानी शुरू करते हैं।

आज तो मुझे बहुत देर हो गई, तुझे संभालना बड़ी झंझट का काम है- एक चरवाहे ने झल्लाते हुए अपने गधे से कहा।

चरवाहा बोला: “मैं तुझे एक गांव से दूसरे गांव लेकर भटकता रहता हूं ताकि अपन दोनों का पेट भर सकूं, पर तेरे तो नखरे ही अलग है, बात ही नहीं मानता।”

अपने गधे पर गुस्सा होते हुए कुछ बड़बड़ाते हुए यह चरवाहा पथरीले रास्ते से गुजर रहा था, तभी उसकी नजर एक चमकीली सी चीज पर पड़ी।

चरवाहा बोला: “अरे, वहां यह क्या चमकता सा दिख रहा है? जरा देखूं तो क्या चीज है यह!!!”

थोड़े आश्चर्य और डर के साथ चरवाहा आगे बढ़ा। देखा, कोई पत्थर है, चमकदार सा। उसने चारों दिशाओं में देखा, सब सुनसान, कोई नहीं दिख रहा। डरते हुए उसने वह पत्थर उठा लिया और अपने गधे से कहा-

चरवाहा बोला: “देख, यह क्या मिला है मुझे, चमकता हुआ एक पत्थर। अच्छा है ना? चाहिए तुझे? तेरे गले में पहना देता हूं।”

और इस तरह वह चमकीला पत्थर एक रस्सी में बांधकर चरवाहे ने अपने गधे की गर्दन में पहना दिया। पत्थर पहनकर मानो गधा खुश हो गया हो, इसे देखकर चरवाहे के चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गई।

चरवाहा बोला: “चल भाई, अब तुझे पानी पिला दूं और मैं भी कुछ खा लूं। सुबह से चलते-चलते मैं भी थक गया हूं अब।”

ऐसे ही बात करते-करते एक गांव तक आ गए। वहां उन्हें एक छोटी सी किराने की दुकान दिखाई दी। साथ ही बाहर एक ड्रम में जानवरों के पीने के लिए पानी भी रखा हुआ था, सो वे दोनों दुकान की तरफ चल दिए।

चरवाहा बोला: “सेठ जी, यह जो पानी बाहर ड्रम में रखा है क्या मैं इसे अपने गधे को पिला दूं?”

सेठ बोला: “हां हां भाई पिला दो, बेजुबानों की सेवा के लिए ही रखा है। तुम भी प्यासे हो और थके हुए लग रहे हो, लो मेरे मटके से लेकर तुम भी पानी पी लो।”

चरवाहा बोला: “बहुत धन्यवाद आपका सेठ जी, भगवान भला करें।”

सेठ बोला: “वह सब तो ठीक है भाई, यह बताओ कि तुम्हारे गधे के गले में यह चमकीली सी क्या चीज लटक रही है?”

चरवाहा बोला: “सेठ जी, यह तो एक पत्थर है, वहां बड़े पहाड़ के नीचे मिला था। अच्छा लगा तो अपने गधे को पहना दिया।”

सेठ बोला: “लगता है अपने गधे से बड़ा लगाव है तुम्हें!”

चरवाहा बोला: “हां, सो तो है। अब यही तो है मेरा साथी, हर सुख दुख में साथ रहता है।”

सेठ बोला: “भाई बुरा न मानो तो एक बात कहूं?”

चरवाहा बोला: “हां बोलिए सेठ जी।”

सेठ बोला: “देखो यह पत्थर मुझे भी अच्छा लग रहा है। क्या तुम इसे मुझे बेचोगे?”

चरवाहा बोला: “सेठ जी, वैसे तो यह मेरे किसी काम का नहीं है। अगर आप इसके बदले हम दोनों को खाने को कुछ दे दें तो मैं पत्थर आपको दे सकता हूं।”

सेठ बोला: “ठीक है, तो एक बोरी गेहूं दे देता हूं। तुम्हारा कुछ दिन का भोजन हो जाएगा, और मैं भी इसे परोपकार की तरह समझ लूंगा।”

चरवाहा बोला: “ठीक है सेठ जी, बहुत मेहरबानी होगी आपकी।”

चरवाहा खुश हो गया, साथ में उसका गधा भी। खुशी-खुशी वह पत्थर सेठ को देते हुए दोनों वहां से चले गए।

सेठ ने भी जाने क्यों वह पत्थर खरीदा था। फिर कुछ देर सोचने के बाद उसने वह चमकीला पत्थर अपने तराजू के बीच में बांध लिया। अब दूर से ही उसकी चमक आने जाने वालों को आकर्षित करने लगी और वह पत्थर पूरे गांव में कौतूहल का विषय बन गया। कुछ दिनों बाद वहां से एक जौहरी गुजरा, उस पत्थर की आभा उसे सेठ की दुकान तक खींच लाई।

जौहरी बोला: “अरे भाई, यह पत्थर यहां क्यों बंधा रखा है, कोई टोटका है क्या?”

सेठ बोला: “नहीं नहीं, यह तो ऐसे ही बांध दिया था। पहले पता नहीं था कि सभी लोग इस पत्थर की इतनी चर्चा करेंगे और आश्चर्यचकित होंगे।”

जौहरी बोला: “अच्छा, यह तो बढ़िया है। पर यह तो बताओ कि यह चमकदार पत्थर आया कहां से?”

सेठ बोला: “भैया, कुछ समय पहले की बात है। एक चरवाहा आया था मेरी दुकान में, उसने गधे के गले में यह पत्थर लटका रखा था। तो मैंने उसे यह बेचने को कहा और उसने एक बोरी गेहूं के बदले यह मुझे दे दिया।”

जौहरी बोला: “इस पत्थर को पास से देख लूं जरा?”

सेठ बोला: “हां भाई देख लो, सभी तो देखते हैं इसे!!”

वह चमकीला पत्थर देखकर तो जैसे जौहरी की आंखों में चमक आ गई हो। वह मन ही मन प्रसन्न हो गया और बुदबुदाने लगा-

जौहरी बोला: “अरे यह सेठ कितना मूर्ख है, इसे पता ही नहीं कि यह चमकीला पत्थर और कुछ नहीं एक नायाब हीरा है जिसकी कीमत लाखों में होगी!!”

जौहरी ने अपने मन की प्रसन्नता के भाव को संभालते हुए कहा-

जौहरी बोला: “देखो, यह पत्थर मुझे पसंद है। अगर बेचना चाहते हो तो मैं इसे खरीदने को तैयार हूं।”

सेठ बोला: “आश्चर्य से, अच्छा तो क्या दाम दे सकते हो आप इसका?”

जौहरी बोला: “तुमने इसे जरा से गेहूं में खरीदा था तो मैं तुम्हें उतने ही रुपए दे देता हूं। हजार रुपए कैसे रहेंगे?”

सेठ बोला: “मजाक कर रहे हो क्या भाई? मैं भी एक व्यापारी हूं। अगर इसे बेचूंगा तो मुनाफा तो चाहिए ना। कम से कम ₹2000 लूंगा।”

जौहरी बोला: “अरे भाई इस पत्थर का कोई मोल नहीं है, मैं तो बस इसे ऐसे ही खरीदना चाहता था। पर तुम तो इसके कुछ भी दाम मांग रहे हो।”

जौहरी ने सोचा यह मेरा आजमाया हुआ पैंतरा है। ऐसा करने पर सेठ उसे वह चमकीला पत्थर कौड़ियों के दाम में बेच देगा। पर सेठ अपनी अलग ही अड़ी में था।

सेठ बोला: “देखो भाई मैं तो उसे इतने में ही बेचूंगा। नहीं खरीदोगे तो भी वह पत्थर मेरी दुकान की शोभा बढ़ा ही रहा है।”

जौहरी बोला: (गुस्से में) “ठीक है, अभी अपने पास रखो। कल आकर सौदा करूंगा। हो सकता है रात भर में तुम्हें अकल आ जाए कि इतना दाम कोई भी नहीं देगा इसका।”

जौहरी ने सोचा कि गांव के लोगों को समझ तो है नहीं, तो फिर कौन खरीदेगा ऐसे। कल आकर देख लेंगे आखिर हीरे की परख जौहरी को ही होती है (मुस्कुराते हुए)। यह कहते हुए वह जौहरी सेठ की दुकान से चला गया।

अब इसे किस्मत ही कहना चाहिए कि शहर का एक बड़ा व्यापारी अपनी कार से इस गांव के रास्ते गुजर रहा था, और अचानक उसकी कार खराब होकर बंद पड़ गई। उसने शहर से गाड़ी मैकेनिक बुला लिया और वह कार सुधारने लगा। तभी शहरी व्यापारी ने सेठ की दुकान देखी, उसके तराजू पर वही पत्थर चमक रहा था। कौतूहल वश वह व्यापारी सेठ के पास पहुंचा।

व्यापारी बोला: “भाई, यह क्या चीज चमक रही है? मैं इसे काफी देर से वहां खड़े होकर देख रहा हूं। इसकी चमक मुझे आपकी दुकान तक ले आई!!”

सेठ बोला: “आज तो सभी इसी की बात कर रहे हैं। आप भी खरीदना चाहते हो क्या इसे?”

व्यापारी बोला: “लगता है इसे बेचने का मन बना ही लिया है। जरा पास से दिखाओगे इसे मुझे?”

व्यापारी ने जैसे ही पत्थर को परखा, वह प्रफुल्लित हो गया और समझ गया कि यह कोई मामूली पत्थर नहीं है। यह तो एक हीरा है और इस अज्ञानी सेठ को इसकी जानकारी नहीं है।

व्यापारी बोला: “तो क्या दाम चाहिए तुमको इस पत्थर का?”

सेठ बोला: “सुबह एक जौहरी आया था। मैंने 2000 मांगे थे, उसने नहीं दिए। आप यह रुपया दे दो और यह पत्थर ले जाओ।”

व्यापारी ने बिना देर किए ₹2000 सेठ के हाथ में रख दिए, और वह कीमती पत्थर ले लिया। अब तक उसकी कार सुधर चुकी थी। उसने तुरंत ही वहां से निकल जाना उचित समझा।

सेठ बोला: “वाह रे भगवान! आज तो कृपा है तेरी। मुझे तो कई गुना मुनाफा हो गया।” (सेठ ने प्रसन्न होकर भगवान का धन्यवाद किया)

अब अगले दिन वह जौहरी फिर से सेठ जी की दुकान पर आया और क्या देखा कि वह चमकीला पत्थर अब सेठ के तराजू पर नहीं है।

जौहरी बोला: (गुस्से से) “सेठ, वह पत्थर कहां गया?”

सेठ बोला: (खुशी से) “वह तो मैंने कल ही एक शहरी व्यापारी को ₹2000 में बेच दिया। बड़ा मुनाफा हुआ।”

जौहरी बोला: (और अधिक गुस्से से) “अरे मूर्ख! मुनाफा नहीं, भारी घाटा हुआ है तुझे। वह कोई मामूली पत्थर नहीं था, वह एक अनमोल हीरा था जिसकी कीमत लाखों में है।”

सेठ बोला: “चलो मैंने माना कि मुझसे गलती हो गई है और मैंने मूर्खता की है। पर तुम तो समझदार हो, ज्ञानवान हो, तुम तो पारखी हो। तुमसे ऐसी गलती कैसे हो गई? तुम तो महामूर्ख निकले। यह पता होते हुए भी कि लाखों की चीज कौड़ियों के दाम में मिल रही है, फिर भी जरा से लालच में तुमने एक फायदे का सौदा नहीं किया और मौका हाथ से जाने दिया।”

यह सब सुनकर वह कंजूस जौहरी पश्चाताप करता रह गया और अपने हाथ मलते हुए वहां से चला गया।

कहानी का सबक: दोस्तों, इस कहानी का सार हमें यह सीख देता है कि जीवन में अवसर सबको मिलते हैं, पर हम ‘कल करेंगे’, ‘परसों करेंगे’ जैसे बहाने बनाकर उन मौकों को गंवा देते हैं।

हमारा यह आलस्य ही हमें अवसर पहचानने नहीं देता और कर्म करने से रोकता है। फिर हम इस जौहरी की तरह कहते रहते हैं कि लाखों का मौका छूट गया।

तो दोस्तों, किसी ने खूब कहा है कि “कल करे सो आज कर, आज करे सो अब”। और अगर हम इसका पालन नहीं करेंगे तो फिर यही कहते रहेंगे कि “हाथ आया मुंह को न लगा”।

 

सुनिए एक ऐसी कहानी जो सिखाती है कि जीवन में मिले अवसरों को कैसे पहचानें।

इस वीडियो में देखें: ✅ एक चरवाहे की कहानी ✅ सेठ की समझदारी ✅ जौहरी की मूर्खता ✅ जीवन का एक बड़ा सबक

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जीवन में कभी-कभी ऐसे मौके आते हैं जो हमारी जिंदगी बदल सकते हैं! 💫

क्या आप जानते हैं कि एक जौहरी ने कैसे अपनी हिचकिचाहट में लाखों का नुकसान कर लिया? 🤔

पढ़िए यह रोचक कहानी और जानिए कि मौके को कैसे पहचानें! ⭐

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